मेरी ख़ामोशी बोल देती है.
मै रहता हूँ खामोश, मदहोश, मदमस्त
जमाने की सारी कही-अनकही बातो से दुर
पर जब बातो ही बातो में बात तेरी आती है
ख़ामोशी मेरी बोल देती है।
बेशक ना तुझें सुनाई देती है ना तू सुन पाती है वो खामोशी से जो कही जाती है।
पुकारा जाता है तेरे नाम को रुक जाने के लिये
होठो में कोई हलचल तो नही होती पर
खामोशियाँ बोल देती है।
जो सुन पाती तो क्या छोड़ जाती,
बेखबर जो हो गये हो खामोशियों को दोष देके.
काश तू सुन पाती समझ पाती वो खामोश होती जुबान की आवाज़ जो अक्सर तुझें सुनाई नही देती थी
आज में अकेला हूँ पर मेरे पास सब है। मुझे किसी को बताना नही होता ।
मै क्यू और क्या बोल रहा हूँ जताना नही होता
मै जी भर के बाते करता हूँ अपनी तन्हाई से
क्योंकि खामोशियाँ बोल देती है।
तन्हा हो के भी में तन्हा नही हूँ
वो मेरी तन्हाई घोल देती है
तन्हाई में मेरी खामोशी बोल देती है ।
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteToo good poetry
ReplyDeleteThankyou jnab
DeleteThis comment has been removed by the author.
Delete