लेखक कैसे बने (नज़रिया )
में भूल जाता हूँ.
तेरे वादे, इरादे,
जो किये थे तूने. .
आधे-आधे. .
ये पक्तिया अकेलेपन में. . . बिना आवाज के
अक्सर बोली जाती हैं. . जब जान होने वाले अनजान हो जाते है. . .
शायद गम को छुपा लेती हैं या दिखा देती हैं. .
समझने वाले वाह-वाह करते हुवे बोलने वाले के दर्द को दिल में महसूस करते हैं और ना समझने वाले सर में. .
एक अजीब सा सुकून का अहसास होता है
अपने दर्द को शब्दो की स्याही से एक मासूम चहरे की चित्रकारी में. . .. . .
बेसक वो चित्र सब को दिखाई ना दे पर बनाने वाले ने इसको बनाने के लिये अपनी बरसो पुरानी महोब्बत का अंत होते देखा था. . .
आसान नहीं है कहानी को आकर देने वाले कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बनाना !
हाँ ये सचाई है समाज लेखक को कामचोर,निठला.निहायती अालसी मानता हैं. . पर लेखक बनने से पहले उसने जीवन में क्या कुछ सहन किया उस से ये तय होता है की लेखक महोदया की रचनाओं को बेचा जायेगा या बेच दिया जायेगा. . .
यहां बेचा का सम्बन्ध पाठको को बेचने से है !
और बेचदिया का सम्बन्ध कबाड़ी को बेचने से है .. !
Comments
Post a Comment