समझ और समाज
इज़्ज़त और बेइज्जत में फ़र्क नजर और नज़ारों का हैं
दिखाई दे बाजार में अपनी हैसियत से कम का कोई
नज़रे मिलाना मुनासिब ना समझने वाले.
अक्सर उन गरीब की बहन बेटी को बाजार में बड़े ही चाव से दुनिया का सुखद नज़ारा समझ के बेसरमी से ताकते हैं. . .
जिन होने नज़रे चुराली थी अब उनको नज़ारे नजर आ रहे हैं. . पहले जिनको देख के बोला की कौन हैं तू अब वो हमारे नजर आ रहे हैं. .
इंसानियत और इंसान में फ़र्क वो ही हैं जो फ़र्क नज़र और नज़रिये में हैं. .
नज़र पे काबू नहीं हैं तो ना सही पर जनाब समाज में इज़त तो नज़रिये की होती हैं. . . बेशक़ गरीब को कोई हक़ नहीं हैं की वो अस्लीलता का प्रदर्शन करे. . ये हक़ तो उनका हैं जो महगी गाड़ियों में मोटा चश्मा लगा के हनी सिंह के गानों पे थिरकते हैं. . .
पर गरीब मजबूरी का शिकार हैं और. अमीर मजबूरी का. . .
अब बात ये आती हैं की दोनों की मजबूरी में फ़र्क किया हैं ??
फर्क बस वो ही हैं जो नज़र और नज़ारे में था.
इंसान और इंसानियत में था. .
गरीब के पास पैसा नहीं हैं बदन ढकने को और
अमीर के पास नज़रिया नहीं हैं बदन ढकने को. .
अब भाई बदन ना दिखाया तो केसी अमीरी केसा अमीर. . . किया करे उस पैसे का जो सड़क के किनारे बेटे लोगो को अपना बदन दिखा के ये ज़ाहिर ना कर सके की देख पैसा हैं तो ऐसा हैं. .
बस यही अमीरी को देख के अक्सर इंसानियत इंसान को गुमनाम राहो में अकेला छोड़ देती हैं. . . गरीब ख़ुश हैं की वो अमीर से जादा कपड़े अपने बदन पे लपेटे हुवे हैं !
मुझे खुशी होती हैं जब में उस इंसानियत को देखता हु जो उस अमीर का साथ छोड़ के उस गरीब के पास दोडी चली अती हैं जिसे वो महीने भर की कमाई से कभी खरीद ना पता. . .
खुशी होती हैं गरीब होने पे की चलो समाज में इज़त बेसक वो ना मिली जो पैसे वालो को मिलती हो पर हम सड़क पे चलने वालो को नज़ारे देनी की होड़ में नंगे नहीं होते. . . हमारा इंसान आज भी इंसानियत के साथ रहता हैं. .
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